मुझे मत खोजिए, अपने आप को खोजिए। आपको मेरी या किसी और की आवश्यकता नहीं क्योंकि एकमात्र चीज जो वास्तव में मायने रखती है वो आप खुद हैं। आप जिसके लिए तरसते हैं वो आपके भीतर ही विद्यमान है, यथावत आपमें ही, यहीं और अभी।

-प्रभुजी

मेरी कहानी मेरी स्व-धारणा से मेरे यथार्थ-स्थापना का सफर है…. यह तीर्थयात्रा आंतरिक भी है और बाह्य भी। व्यक्तिगत से सार्वलौकिक तक, आंशिक से समग्र तक, भ्रम से वास्तविकता तक, और प्रत्यक्ष से यथार्थ तक की यात्रा। मानव से परमात्मा तक की एक आवारा उड़ान। मेरी कहानी सार्वजनिक नहीं है, अपितु नितांत निजी और अंतरंग है। इसका संबंध सामाजिक जीवन की उहापोह से नहीं, यह तो आत्मा की अनंत गहराइयों में संजोई एक आह है। भोर में उदय होने वाला रात्रि में विश्राम करता है; हर जलती हुई लौ अंततः बुझ जाती है। केवल वही समाप्त होता है जिसका आरंभ हो; केवल वही अंत होता है जिसका आदि हो। परंतु जो वर्तमान में रहता है वह न पैदा होता है और ना ही मरता है, क्योंकि जिसका कोई सृजन नहीं वो कभी नष्ट नहीं हो सकता।

मैं दृष्टाओं, प्रबुद्ध आत्माओं और ब्रह्मांड की उन परछाइयों का शिष्य हूं जो मृत्यु संग चलते हैं और जिनका कोई सांसारिक अस्तित्व नहीं। मैं महज एक सनक या स्वर्ग का एक मजाक हूँ और मेरे प्रिय आध्यात्मिक गुरुओं की एकमात्र भूल हूँ। मुझे मेरे आध्यात्मिक बचपन की दीक्षा चांदनी से मिली, जिसने मुझे अपनी रोशनी से अवगत करवाया और अपना अस्तित्व मुझसे साझा किया। मेरी प्रेरणा एक सीगल पक्षी थी जिसे उड़ने से अधिक किसी और चीज से प्रेम नहीं था। असंभव के प्रेम में, मैं एक तारे की चमक से मंत्रमुग्ध होकर ब्रह्मांड भर में घूमा। मैंने गुप्त रहस्यों को उजागर करने वालों के अवशेषों और चिन्हों का अनुसरण करते हुए अनगिनत रास्तों का सफर किया। जैसे सागर पानी के लिए तरसता हो, मैं अपने ही घर में अपना घर तलाशता रहा।

एक साधारण आत्मकथाकार, अर्थपूर्ण अनुभवों का वर्णनकर्ता, जो अपनी अंतरंग कथा दूसरों के साथ साझा कर रहा है। मैं एक मार्गदर्शक, प्रशिक्षक, अध्यापक, अनुदेशक, शिक्षक, मनोवैज्ञानिक, ज्ञानी, शिक्षाशास्त्री, प्रचारक, रब्बी, पोसेक हलाचा, उपचारक, चिकित्सक, सत्संगी, अलौकिक, सरदार, माध्यम, उद्धारक या गुरु होने का दावा नहीं करता। मैं सिर्फ खुद जैसा होने का दावा करता हूं। मैं खुदको अपने अलावा किसी और वस्तु या व्यक्ति का प्रतिनिधि न होने का साहस और औज प्रदान करता हूं।

मैं तो बस एक राहगीर हूँ, जिससे आप अपना रास्ता पूछ सकते हैं। मैं खुशी खुशी आपको उस जगह का रास्ता बता दूंगा जहां शांति ही शांति है…. तारों और सूरज के उस पार, आपकी इच्छाओं और तृष्णाओं के उस पार, दिगकाल के उस पार, संकल्पनाओं और निष्कर्षों के उस पार और आप जिसे अपना सच समझते हैं या जो आपका सच हो सकता है उस सब के उस पार।

मैं आहें, आशाएं, मौन, आकांक्षाएं और उदासी…. आत्मा के आंतरिक परिदृष्य और आत्मिक सूर्यास्त रंगता हूँ। मैं ऐसा चित्रकार  हूँ जो हमारे अंतः के अवर्णनीय, अकथनीय, अपरिभाष्य और अपुष्ट को चित्रित करता है…. या शायद मैं सिर्फ रंग लिखता हूँ और शब्द रंगता हूँ।

प्रयासों और रहस्योद्घाटन के बीच विद्यमान अगाध गर्त से सचेत, मैं आत्मीय रहस्यों के ईमानदार चित्रण के अथक – असंभव प्रयास में रहता हूँ।

बचपन से ही, किताबों ने मेरा ध्यान अपनी तरफ खींचा; उनके सौजन्य से मैं अलग अलग जगहें घूमा, लोगों से मिला और दोस्त बनाए। वो छोटी छोटी कागज की खिड़कियां सही मायने में मेरे सच्चे प्राथमिक विद्यालय, माध्यमिक विद्यालय और महाविद्यालय थे। कुशल शिक्षकों की ही भांति इन यंत्रों ने चिंतन, ध्यान, एकाग्रता, विचार और समाधि के माध्यम से मेरा मार्गदर्शन किया।

जिस प्रकार एक चिकित्सक मानव शरीर का अध्ययन करता है, या कोई वकील कानूनों का, मैंने अपना पूरा जीवन स्वयं के अध्ययन के लिए समर्पित कर दिया है। मैं पूरे निश्चय से कह सकता हूँ कि मैं जानता हूँ कि इस दिल में क्या बसता और सांस लेता है।

मेरा उद्देश्य दूसरों को मनाना नहीं है। मेरा इरादा किसी को कुछ समझाने का भी नहीं। मैं धर्मशास्त्र या दर्शन की तजवीज नहीं करता, ना ही मैं प्रवचन या सीख देता हूँ, मैं बस अपने विचार आप तक पहुंचा रहा हूँ। इन शब्दों की प्रतिध्वनि आपको शांति, मौन, प्रेम, अस्तित्व, चेतना और सम्पूर्ण आनंद के अनंत दिग्काल तक ले जा सकती है।

मुझे मत खोजिए, अपने आप को खोजिए। आपको मेरी या किसी और की आवश्यकता नहीं क्योंकि  एकमात्र चीज जो वास्तव में मायने रखती है वो आप खुद हैं। आप जिसके लिए तरसते हैं वो आपके भीतर ही विद्यमान है, यथावत आपमें ही, यहीं और अभी।

मैं पुनः दोहराई हुई जानकारी का सौदागर नहीं, ना ही मैं अपनी आध्यात्मिकता का व्यापार ही करना चाहता हूँ। मैं विश्वास या दर्शन नहीं सिखाता। मैं सिर्फ वही बोलता हूँ जो मुझे दिखता है और वही साझा करता हूँ जो मैं जानता हूँ।

प्रसिद्धि से बचें, क्योंकि सच्ची महिमा जनमानस की राय में नहीं, आपके अपने यथार्थ में है। अहम ये नहीं कि कोई आपके बारे में क्या सोचता है, अहम है अपने अस्तित्व के लिए आपकी अभिस्वीकृति और सम्मान।

सफलता के स्थान पर चिरानंद को, प्रतिष्ठा के स्थान पर जीवन को एवं जानकारी के स्थान पर ज्ञान को चुनें। यदि आप इसमें सफल हुए तो केवल प्रशस्ति ही नहीं विशुद्ध ईर्ष्या भी जानेंगे। वस्तुतः, ईर्ष्या साधारण का असाधारण को दिया सम्मान और अपनी हीनताओं का खुला अंगीकरण ही तो है।

मैं तुम्हें स्वतंत्र होकर उड़ने और बेखौफ गलतियां करने की सलाह देता हूँ। अपनी गलतियों को सबक बनाने की कला सीखें। अपनी गलतियों के लिए कभी किसी को दोष ना दें: याद रखें की अपने जीवन की पूरी जिम्मेदारी लेना परिपक्वता का लक्षण है। जब आप उड़ते हैं तो सीखते हैं कि आसमान छू लेना मायने नहीं रखता, मायने रखता है आसमान में अपने पंख फैला लेने का साहस। आप जितना ऊपर उठते हैं, दुनिया उतनी ही छोटी और महत्वहीन लगने लगती है। ज्यों ही आप चलना शुरू करेंगे, देर-सबेर ये जान जायेंगे कि हर तलाश आप ही में शुरू और आप ही में खत्म होनी है।

 

आपका निःशर्त शुभचिंतक,

प्रभुजी।